16 March 2025 Current Affairs Questions
हैलो दोस्तों !
आज हम current affairs के इन बिंदुओं पर गहराई से विचार करेंगे और उम्मीद करेंगे कि आप इन बिंदुओं को लंबे समय तक याद रखने के लिए हमारे साथ 30 से अधिक प्रश्नों की क्विज जरूर खेलेंगे
- A1. अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान: स्पैडेक्स मिशन
- A2. युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय'
- A3. इसरो का शतक: अंतरिक्ष में भारत की एक और छलांग
- A4. आपदा से सुरक्षा: कवचम प्रणाली
- A5. अंतरिक्ष का कचरा और केसलर सिंड्रोम
- A6. भूमध्य सागर के नीचे ब्रह्मांड का रहस्य: KM3NeT दूरबीन
आप प्रतिदिन हमारी वेबसाइट SelfStudy Meter पर 30 करंट अफेयर प्रश्नों को पढ़ सकते हैं और अगले दिन सुबह 6:00 बजे इन पढ़े हुए प्रश्नों की क्विज खेल सकते हैं हमारे YouTube channel - Mission: CAGS पर, जबकि प्रतिदिन 45 से अधिक करंट अफेयर प्रश्नों की क्विज खेलने के लिए व pdf डाउनलोड करने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो कर सकते हैं ।Our Telegram channel - Mission: CAGS
Quiz time on Telegram is 7:30 p.m
क्विज खेलने के फायदे:
क्विज खेलने से आपकी रीडिंग स्किल इंप्रूव होगी, लर्निंग स्किल बढ़ेगी और आप अपनी तैयारी का स्वमूल्यांकन कर सकेंगे मतलब आप अपना याद किया हुआ चेक कर सकेंगे कि आपके द्वारा पढ़ा हुआ आपको कितना याद है?
क्विज खेलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी तैयारी को एक दिशा दे पाएंगे।

A1.
अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान: स्पैडेक्स मिशन
India's
New Leap in Space: SPADEX Mission
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 30 दिसंबर, 2024 को PSLV-C60 रॉकेट का उपयोग करके सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SHAR), श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से अपने महत्वाकांक्षी स्पेस डॉकिंग मिशन (स्पैडेक्स मिशन) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
16 जनवरी,
2025 को, भारत अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग करने वाला रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया।
स्पैडेक्स मिशन इसरो का एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है।
इसमें दो छोटे अंतरिक्ष यान शामिल हैं: SDX01 (चेज़र) और SDX02 (टारगेट), जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम है।
दोनों अंतरिक्ष यान 55 डिग्री के झुकाव पर 470 किमी की पृथ्वी की निचली वृत्ताकार कक्षा (LEO) में स्थापित किए गए थे।
स्पैडेक्स मिशन के उद्देश्य:
यह मिशन कक्षीय डॉकिंग में भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए है।
यह भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों और उपग्रह सेवा मिशनों के लिए महत्वपूर्ण तकनीक है।
यह स्वायत्त डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन है।
भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण तकनीक का प्रदर्शन।
अतिरिक्त जानकारी:
स्पेस डॉकिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें दो अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में एक साथ जुड़ते हैं।
यह तकनीक भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे कि अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और रखरखाव, और अन्य ग्रहों पर मानव मिशन।
इस मिशन की सफलता इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रमाण है।
यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
1. इसरो ने स्पैडेक्स मिशन कब लॉन्च किया?
a) 16 जनवरी,
2025
b) 30 दिसंबर,
2024
c) 15 अगस्त,
2024
d) 26 जनवरी,
2025
2. स्पैडेक्स मिशन में कितने अंतरिक्ष यान शामिल हैं?
a) 1
b) 2
c) 3
d) 4
3. स्पैडेक्स मिशन के अंतरिक्ष यानों को किस कक्षा में स्थापित किया गया था?
a) जियोसिंक्रोनस कक्षा
b) ध्रुवीय कक्षा
c) पृथ्वी की निचली वृत्ताकार कक्षा (LEO)
d) चंद्र कक्षा
4. भारत अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग करने वाला दुनिया का कौन सा देश बन गया है?
a) पहला
b) दूसरा
c) तीसरा
d) चौथा
5. स्पैडेक्स मिशन का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
a) चंद्रमा पर मानव मिशन
b) मंगल ग्रह पर रोवर भेजना
c) कक्षीय डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन
d) अंतरिक्ष में पर्यटन को बढ़ावा देना
A2.
युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय'
Battlefield
Surveillance System 'Sanjay'
24 जनवरी,
2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई दिल्ली में युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय' (BSS) को हरी झंडी दिखाई।
यह प्रणाली युद्धक्षेत्र की पारदर्शिता को बढ़ाएगी और एक केंद्रीकृत वेब एप्लिकेशन के माध्यम से भविष्य के युद्धक्षेत्र को बदल देगी।
संजय एक स्वचालित प्रणाली है जो सभी जमीनी और हवाई युद्धक्षेत्र सेंसर से इनपुट को एकीकृत करती है, उनकी सत्यता की पुष्टि करती है, दोहराव को रोकती है और उन्हें सुरक्षित डेटा नेटवर्क और सैटेलाइट संचार नेटवर्क पर युद्धक्षेत्र की एक सामान्य निगरानी तस्वीर बनाने के लिए जोड़ती है।
संजय को भारतीय सेना और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा स्वदेशी और संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
बीएसएस अत्याधुनिक सेंसर और अत्याधुनिक एनालिटिक्स से लैस है।
यह प्रणाली विशाल भूमि सीमाओं की निगरानी करेगी, घुसपैठ को रोकेगी, अद्वितीय सटीकता के साथ स्थितियों का आकलन करेगी और खुफिया, निगरानी और टोही में एक बल गुणक साबित होगी।
यह कमांडरों को नेटवर्क-केंद्रित वातावरण में पारंपरिक और उप-पारंपरिक दोनों तरह के ऑपरेशन में काम करने में सक्षम बनाएगा।
यह प्रणाली कमांड और सेना मुख्यालय और भारतीय सेना निर्णय समर्थन प्रणाली को इनपुट प्रदान करेगी।
उच्च गतिशीलता और स्वचालन: प्रभावी क्षेत्र परिनियोजन के लिए भारी-भरकम, उच्च-गतिशीलता वाले वाहनों पर स्थापित।
यह प्रणाली भारतीय सेना में डेटा और नेटवर्क-केंद्रित क्षमताओं की दिशा में एक असाधारण छलांग है।
अतिरिक्त जानकारी:
'संजय' प्रणाली का नाम महाभारत के संजय के नाम पर रखा गया है, जिनके पास दिव्य दृष्टि थी और वे युद्ध के मैदान में क्या हो रहा था, इसे देखने में सक्षम थे।
भारतीय सेना में डेटा और नेटवर्क-केंद्रित क्षमताओं को मजबूत करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
6. युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय' (BSS) को किसने हरी झंडी दिखाई?
a) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
b) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
c) गृह मंत्री अमित शाह
d) विदेश मंत्री एस. जयशंकर
7. युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय' को किसके द्वारा विकसित किया गया है?
a) रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
b) भारतीय सेना और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL)
c) हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)
d) इसरो
(ISRO)
8. युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय' का मुख्य कार्य क्या है?
a) साइबर सुरक्षा प्रदान करना
b) युद्धक्षेत्र की निगरानी और सूचना एकत्र करना
c) मिसाइल रक्षा प्रणाली
d) संचार नेटवर्क स्थापित करना
9. युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली 'संजय' किस प्रकार के सेंसर से लैस है?
a) केवल जमीनी सेंसर
b) केवल हवाई सेंसर
c) जमीनी और हवाई दोनों सेंसर
d) कोई सेंसर नहीं
10. 'संजय' प्रणाली का नाम किसके नाम पर रखा गया है?
a) छत्रपति शिवाजी
b) महाराणा प्रताप
c) महाभारत के संजय
d) सम्राट अशोक
A3.
इसरो का शतक: अंतरिक्ष में भारत की एक और छलांग
ISRO's
Century: India's Leap in Space
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 29 जनवरी, 2025 को अपना 100वाँ मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
यह मिशन GSLV-F15 रॉकेट द्वारा किया गया, जिसने NVS-02 नेविगेशन उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित किया।
NVS-02, NavIC (नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन) का हिस्सा है, जो भारत का अपना क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है।
यह उपग्रह ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) का भारतीय संस्करण है।
यह उपग्रह दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रहों की श्रृंखला का दूसरा और NavIC में नौवां उपग्रह है।
इस पेलोड में रुबिडियम-87 से निर्मित एक परमाणु घड़ी लगी है।
इसरो ने 2024 के अंत में अपने 99वें मिशन स्पैडेक्स और POEM-4 को पीएसएलवी-C60 से लॉन्च किया था।
यह मिशन भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो GPS जैसी विदेशी प्रणालियों पर निर्भरता कम करेगा और नेविगेशन सेवाओं में सुधार करेगा।
अतिरिक्त जानकारी:
NavIC, भारत और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति, नेविगेशन और समय (PVT) सेवाएं प्रदान करता है।
यह प्रणाली विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे कि परिवहन, आपदा प्रबंधन और मानचित्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इसरो ने 10 अगस्त 1979 को श्रीहरिकोटा से पहले सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएलवी) मिशन के बाद 46 वर्षों में 100 मिशनों का एक बड़ा सफर तय किया है।
यह मिशन इसरो की तकनीकी क्षमता और अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती शक्ति का प्रतीक है।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
11. इसरो ने अपना 100वाँ मिशन कब लॉन्च किया?
a) 29 जनवरी,
2024
b) 29 फरवरी,
2024
c) 29 जनवरी,
2025
d) 29 फरवरी,
2025
12. इसरो के 100वें मिशन में किस रॉकेट का उपयोग किया गया था?
a) PSLV-C60
b) GSLV-F15
c) SSLV-D2
d) LVM3-M2
13. NVS-02 किस प्रणाली का हिस्सा है?
a) GPS
b) GLONASS
c) NavIC
d) Galileo
15. NVS-02
में किस तत्व से बनी परमाणु घड़ी लगी है?
a) सीज़ियम-133
b) रुबिडियम-87
c) पोटैशियम-40
d) सोडियम-23
16. इसरो ने अपना पहला सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएलवी) मिशन कब लॉन्च किया था?
a) 15 अगस्त,
1969
b) 10 अगस्त,
1979
c) 26 जनवरी,
1982
d) 2 अक्टूबर,
1985
A4.
आपदा से सुरक्षा: कवचम प्रणाली
Safety
from Disaster: Kavacham System
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 21 जनवरी, 2025 को तिरुवनंतपुरम में 'कवचम' (KaWaCHaM) प्रणाली का उद्घाटन किया।
'कवचम' का पूरा नाम है: केरल चेतावनी संकट और जोखिम प्रबंधन प्रणाली (Kerala Warnings Crisis and
Hazards Management System).
मलयालम में 'कवचम' का अर्थ है 'ढाल', जो सुरक्षा का प्रतीक है।
इस प्रणाली को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और विश्व बैंक के सहयोग से राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (KSDMA) ने विकसित किया है।
यह प्रणाली आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत करने के लिए बनाई गई है।
इस प्रणाली में 126 सायरन स्ट्रोब लाइट इकाइयां, VPN से जुड़े 93 आपातकालीन संचालन केंद्र, निर्णय समर्थन सॉफ्टवेयर और एक बड़ा डेटा सेंटर शामिल हैं।
यह प्रणाली भारी बारिश, तेज हवाओं और समुद्री लहरों जैसी गंभीर मौसम की घटनाओं के लिए समय पर चेतावनी देगी।
यह राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना के तहत विकसित किया गया है।
यह प्रणाली सायरन और मोबाइल संदेशों के माध्यम से वास्तविक समय में अलर्ट और चेतावनी जारी करके सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाएगी।
यह भारत की पहली पूर्ण एकीकृत आपदा चेतावनी प्रणाली है।
यह प्रणाली भारत मौसम विज्ञान विभाग, INCOIS, CWC और विभिन्न एजेंसियों से डेटा एकत्र करती है।
इस प्रणाली में एक नागरिक पोर्टल और 24 घंटे इमरजेंसी कॉल सेंटर भी है।
यह प्रणाली नागरिको को खतरों की रिपोर्ट करने और आपात स्थिति के दौरान मदद मांगने में सक्षम बनाती है।
अतिरिक्त जानकारी:
केरल एक ऐसा राज्य है जहाँ प्राकृतिक आपदाओं का खतरा अधिक होता है, इसलिए यह प्रणाली वहाँ के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है।
यह प्रणाली आपदा के समय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में मदद करेगी।
यह प्रणाली आपदा के बाद बचाव कार्यों में भी मदद करेगी।
यह प्रणाली भविष्य में आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करेगी।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
16. 'कवचम' प्रणाली का उद्घाटन कब किया गया?
a) 21 जनवरी,
2024
b) 21 जनवरी,
2025
c) 21 फरवरी,
2025
d) 21 मार्च,
2025
17. 'कवचम' का पूर्ण रूप क्या है?
a) केरल वायु चेतावनी चक्रण और मौसम प्रबंधन प्रणाली
b) केरल चेतावनी संकट और जोखिम प्रबंधन प्रणाली
c) केरल जल चेतावनी संकट और मौसम प्रबंधन प्रणाली
d) केरल कर्मठ चेतावनी संकट और जोखिम प्रबंधन प्रणाली
18. 'कवचम' प्रणाली को किसके सहयोग से विकसित किया गया है?
a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और विश्व बैंक
c) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
d) रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
19. 'कवचम' प्रणाली में कितने सायरन स्ट्रोब लाइट इकाइयां शामिल हैं?
a) 100
b) 126
c) 150
d) 200
20. 'कवचम' प्रणाली किस प्रकार की चेतावनी प्रदान करती है?
a) भूकंप
b) भारी बारिश, तेज हवाओं और समुद्री लहरें
c) ज्वालामुखी विस्फोट
d) भूस्खलन
A5.
अंतरिक्ष का कचरा और केसलर सिंड्रोम
Space
Debris and Kessler Syndrome
केसलर सिंड्रोम:
केसलर सिंड्रोम एक सिद्धांत है जिसका प्रस्ताव 1978 में नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड जे. केसलर द्वारा किया गया था।
इसमें कहा गया है कि अंतरिक्ष में मलबे की मात्रा एक निश्चित बिंदु तक पहुँचने के बाद, टकरावों की एक श्रृंखला शुरू हो सकती है, जिससे और भी मलबा पैदा होगा।
यह मलबा उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचा सकता है, और यहाँ तक कि अंतरिक्ष यात्रा को भी असंभव बना सकता है।
अंतरिक्ष मलबे के कारण:
निष्क्रिय उपग्रह: जब उपग्रह अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं, तो वे अक्सर कक्षा में ही रह जाते हैं।
रॉकेट के टुकड़े: रॉकेट प्रक्षेपण के बाद, उनके टुकड़े अक्सर कक्षा में रह जाते हैं।
टकराव: जब दो अंतरिक्ष वस्तुएँ टकराती हैं, तो वे मलबे के टुकड़े पैदा कर सकती हैं।
केसलर सिंड्रोम के प्रभाव:
उपग्रहों को नुकसान: अंतरिक्ष मलबे उपग्रहों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे वे बेकार हो सकते हैं।
अंतरिक्ष यात्रा को खतरा: अंतरिक्ष मलबा अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरनाक है, और यह अंतरिक्ष यात्रा को भी असंभव बना सकता है।
पृथ्वी की कक्षा को खतरा: अंतरिक्ष में मलबे की मात्रा इतनी बढ़ सकती है कि पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों का संचालन करना मुश्किल हो जाएगा।
अंतरिक्ष मलबे का अधिकांश हिस्सा पृथ्वी की सतह से 2,000 किलोमीटर के भीतर, निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में है, हालोंकि कुछ भूस्थिर कक्षा (भूमध्य रेखा से 35,786 किलोमीटर ऊपर) में हैं।
केसलर सिंड्रोम से बचाव के उपाय:
अंतरिक्ष मलबे को कम करना: अंतरिक्ष एजेंसियों को अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए, जैसे कि निष्क्रिय उपग्रहों को कक्षा से हटाना।
अंतरिक्ष मलबे की निगरानी: अंतरिक्ष एजेंसियों को अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करनी चाहिए, ताकि वे टकरावों से बच सकें।
अंतरिक्ष मलबे को हटाने की तकनीक: वैज्ञानिक अंतरिक्ष मलबे को हटाने के लिए नई तकनीक विकसित कर रहे हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
अंतरिक्ष मलबा एक गंभीर समस्या है, और यह भविष्य में और भी गंभीर हो सकती है।
अंतरिक्ष एजेंसियों और सरकारों को इस समस्या को हल करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
1981 में रूसी कॉसमॉस-1275 उपग्रह अंतरिक्ष मलबे से टकराने के कारण क्षतिग्रस्त होने वाला पहला उपग्रह था। 2013 में, अमेरिकी अंतरिक्ष बल का GOES-13 उपग्रह भी अंतरिक्ष मलबे से नष्ट हो गया था।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
21. केसलर सिंड्रोम का प्रस्ताव किसने दिया था?
a) एलन मस्क
b) डोनाल्ड जे. केसलर
c) स्टीफन हॉकिंग
d) नील आर्मस्ट्रांग
22. केसलर सिंड्रोम किससे संबंधित है?
a) जलवायु परिवर्तन
b) अंतरिक्ष मलबा
c) परमाणु युद्ध
d) जैव विविधता हानि
23. निम्नलिखित में से कौन सा अंतरिक्ष मलबे का कारण नहीं है?
a) निष्क्रिय उपग्रह
b) रॉकेट के टुकड़े
c) उल्कापिंड
d) ज्वालामुखी विस्फोट
24. केसलर सिंड्रोम का मुख्य खतरा क्या है?
a) पृथ्वी पर बाढ़
b) उपग्रहों को नुकसान और अंतरिक्ष यात्रा में बाधा
c) ओजोन परत का क्षरण
d) ग्लोबल वार्मिंग
25. अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
a) निष्क्रिय उपग्रहों को कक्षा से हटाना
b) अंतरिक्ष मलबे की निगरानी करना
c) अंतरिक्ष मलबे को हटाने की तकनीक विकसित करना
d) उपरोक्त सभी
A6.
भूमध्य सागर के नीचे ब्रह्मांड का रहस्य: KM3NeT दूरबीन
Unveiling
the Universe Beneath the Mediterranean: The KM3NeT Telescope
यूरोपीय वैज्ञानिक भूमध्य सागर के गहराई में अदृश्य "भूत कणों" (न्यूट्रिनो) का पता लगाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रहे हैं।
इस परियोजना का नाम KM3NeT (क्यूबिक किलोमीटर न्यूट्रिनो टेलीस्कोप) है, जिसमें दो विशाल दूरबीनें शामिल हैं।
इनमें से एक दूरबीन उच्च ऊर्जा वाले खगोलीय न्यूट्रिनो का अध्ययन करेगी, जो ब्रह्मांड की गहराइयों से आते हैं।
दूसरी दूरबीन वायुमंडलीय न्यूट्रिनो का पता लगाएगी, जो पृथ्वी के वायुमंडल में उत्पन्न होते हैं।
KM3NeT परियोजना तीन स्थानों पर स्थापित की जा रही है:
KM3NeT-Fr (टूलॉन, फ्रांस के तट पर)
KM3NeT-It (सिसिली, इटली के तट पर)
KM3NeT-Gr (पाइलोस, ग्रीस के तट पर)
यह परियोजना अंटार्कटिका में स्थित आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला का पूरक है, जो 2011 से उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रिनो का पता लगा रही है।
न्यूटिनो बहुत छोटे उप-परमाणु कण हैं जिनका पता लगाना बहुत मुश्किल है। वे शायद ही कभी अन्य पदार्थों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, इसलिए वे पृथ्वी सहित किसी भी पदार्थ से आसानी से गुजर सकते हैं।
KM3NeT टेलीस्कोप पानी में चेरेंकोव विकिरण का पता लगाकर काम करता है, जो तब उत्पन्न होता है जब एक न्यूट्रिनो पानी के अणु से टकराता है।
चेरेंकोव विकिरण प्रकाश का एक नीला चमक है, जिसे पानी में डूबे हुए संवेदनशील प्रकाश सेंसरों द्वारा पता लगाया जा सकता है।
KM3NeT का उद्देश्य ब्रह्मांड की कुछ सबसे हिंसक और ऊर्जावान घटनाओं, जैसे कि सुपरनोवा और सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
यह परियोजना वैज्ञानिकों को डार्क मैटर और अन्य रहस्यमय खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करने में भी मदद करेगी।
बहुविकल्पीय प्रश्न:
26. KM3NeT
परियोजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) समुद्री जीवन का अध्ययन करना
b) भूमध्य सागर के नीचे ज्वालामुखी गतिविधि का पता लगाना
c) उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रिनो का पता लगाना
d) पानी के नीचे की गुफाओं की खोज करना
27. KM3NeT दूरबीनें कहाँ स्थापित की जा रही हैं?
a) अटलांटिक महासागर
b) प्रशांत महासागर
c) भूमध्य सागर
d) हिंद महासागर
28. KM3NeT दूरबीनें किस प्रकार के विकिरण का पता लगाती हैं?
a) एक्स-रे विकिरण
b) गामा विकिरण
c) चेरेंकोव विकिरण
d) अवरक्त विकिरण
29. आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला कहाँ स्थित है?
a) उत्तरी ध्रुव
b) दक्षिणी ध्रुव
c) भूमध्य रेखा
d) हिमालय पर्वत
30. KM3NeT परियोजना वैज्ञानिकों को किस विषय का अध्ययन करने में मदद करेगी?
a) डार्क मैटर
b) सुपरनोवा
c) सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक
d) उपरोक्त सभी
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नोट: ये बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) वर्तमान घटनाओं पर आधारित हैं। कृपया ध्यान दें कि समय के साथ घटनाओं और जानकारी में बदलाव हो सकता है।
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