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11 August 2025 Current Affairs Questions

 11 August 2025 Current Affairs Questions

हैलो दोस्तों ! 

आज हम current affairs के इन बिंदुओं पर गहराई से विचार करेंगे और उम्मीद करेंगे कि आप इन बिंदुओं को लंबे समय तक याद रखने के लिए हमारे साथ 30 से अधिक प्रश्नों की क्विज जरूर खेलेंगे. दी गई घटनाओं पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न नीचे दिए गए हैं।

  • A1. नीलगिरि ताहर: केरल और तमिलनाडु का साझा प्रयास
  • A2.  समुद्र की गहराई से अंतरिक्ष तक: 'मेघयान 25'
  • A3.  दीनबंधु छोटू राम पावर प्लांट: हरियाणा के लिए एक नई शुरुआत
  • A4. बाल तस्करी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
  • A5. भारत का गौरव: 'गौरव' ग्लाइड बम का सफल परीक्षण
  • A6. भारत की नई शक्ति: लेज़र-निर्देशित हथियार प्रणाली

आप प्रतिदिन हमारी वेबसाइट SelfStudy Meter पर 30 करंट अफेयर प्रश्नों को पढ़ सकते हैं और अगले दिन सुबह 7:00 बजे इन पढ़े हुए प्रश्नों की क्विज खेल सकते हैं हमारे YouTube channel - Mission: CAGS पर, जबकि प्रतिदिन 45 से अधिक करंट अफेयर प्रश्नों की क्विज खेलने के लिए व pdf  डाउनलोड करने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो कर सकते हैं ।
Our Telegram channel - Mission: CAGS
Quiz time on Telegram is 7:30 p.m



क्विज खेलने के फायदे:

क्विज खेलने से आपकी रीडिंग स्किल इंप्रूव होगी, लर्निंग स्किल बढ़ेगी और आप अपनी तैयारी का स्वमूल्यांकन कर सकेंगे मतलब आप अपना याद किया हुआ चेक कर सकेंगे कि आपके द्वारा पढ़ा हुआ आपको कितना याद है?
क्विज खेलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी तैयारी को एक दिशा दे पाएंगे।

A1.
नीलगिरि ताहर: केरल और तमिलनाडु का साझा प्रयास
Nilgiri Tahr: A Collaborative Effort by Kerala and Tamil Nadu

क्या आप जानते हैं कि पश्चिमी घाट की एक अनूठी और लुप्तप्राय प्रजाति, नीलगिरि ताहर को बचाने के लिए केरल और तमिलनाडु के वन विभाग एक साथ आए हैं? हाल ही में, 24 से 27 अप्रैल, 2025 तक, इन दोनों राज्यों में एक संयुक्त गणना अभियान चलाया गया। इस पहल का उद्देश्य इस संवेदनशील प्रजाति की आबादी का सटीक अनुमान लगाना है, जो एराविकुलग राष्ट्रीय उद्यान की 50वीं वर्षगाँठ का भी हिस्सा है।

नीलगिरि ताहर के बारे में कुछ खास बातें:

स्थानिक प्रजाति: नीलगिरि ताहर एक स्थानिक प्रजाति है, जिसका अर्थ है कि यह केवल पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।

सबसे बड़ी आबादी: एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान (Eravikulam National Park) को नीलगिरि ताहर की सबसे बड़ी ज्ञात आबादी का घर माना जाता है।

वैज्ञानिक गणना: इस गणना में कैमरा ट्रैप, पेलेट सैंपल विश्लेषण (Pellet Sample Analysis) और बाउंडेड काउंट तकनीक (Bounded Count Technique) जैसे आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया गया।

व्यापक कवरेज: केरल में 20 वन प्रभागों में 89 गणना ब्लॉक स्थापित किए गए, जो तिरुवनंतपुरम से वायनाड तक फैले हुए हैं।

नोडल अधिकारी: पेरियार टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर प्रमोद पी.पी. को इस जनगणना का नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।

 

A2.
समुद्र की गहराई से अंतरिक्ष तक: 'मेघयान 25'
From Seas to Skies: A Look at 'Meghayan 25'

14 अप्रैल, 2025 को भारतीय नौसेना के मौसम विज्ञान और महासागर विज्ञान संगोष्ठी का तीसरा संस्करण, 'मेघयान 25' दिल्ली के नौसेना भवन में आयोजित किया गया। यह विशेष आयोजन केवल भारतीय नौसेना की मौसम संबंधी क्षमताओं को दर्शाता है, बल्कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के गठन और WMO दिवस, 2025 को भी चिह्नित करता है।

इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य इस वर्ष के WMO दिवस की थीम 'एक साथ प्रारंभिक चेतावनी अंतर को बंद करना' (Closing the Early Warning Gap Together) के साथ तालमेल बिठाना था। इसका उद्घाटन नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने वर्चुअली किया, जो इस बात का संकेत है कि देश की समुद्री सुरक्षा और मौसम विज्ञान एक-दूसरे से कितने गहराई से जुड़े हुए हैं।

यह कार्यक्रम भारत के प्रमुख वैज्ञानिक और तकनीकी संगठनों का एक अनूठा संगम था। इसमें भारतीय मौसम विभाग (IMD), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों ने भाग लिया।

प्रमुख बिंदु:

उद्देश्य: 'मेघयान 25' का मुख्य लक्ष्य मौसम विज्ञान और महासागर विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम विकास, अनुसंधान और तकनीकी प्रगति पर चर्चा करना था। इसका फोकस विशेष रूप से समुद्री संचालन और आपदा प्रबंधन के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने पर था।

भागीदारी: इस संगोष्ठी में केवल नौसेना, बल्कि भारतीय वायु सेना, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (SAC), इसरो, और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (IIT-M) जैसे शीर्ष संस्थानों की भागीदारी ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया। यह विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।

WMO दिवस: हर साल 23 मार्च को मनाया जाने वाला WMO दिवस, 1950 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना की याद दिलाता है। WMO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और परिचालन जल विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है।

प्रारंभिक चेतावनी का महत्व: 'प्रारंभिक चेतावनी' का सिद्धांत मौसम संबंधी आपदाओं, जैसे चक्रवात, सुनामी और बाढ़ के दौरान जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में चक्रवात जैसी घटनाओं से निपटने के लिए INCOIS और IMD जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

 

 

A3.
दीनबंधु छोटू राम पावर प्लांट: हरियाणा के लिए एक नई शुरुआत
Deenbandhu Chhotu Ram Power Plant: Powering the Future

हाल ही में, हरियाणा के यमुनानगर में एक महत्वपूर्ण परियोजना की शुरुआत हुई है, जो राज्य के ऊर्जा क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने का वादा करती है। आइए, इस पावर प्लांट के बारे में कुछ खास बातें जानते हैं:

उद्घाटन और स्थान: 14 अप्रैल, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के यमुनानगर में 800 मेगावॉट (MW) के दीनबंधु छोटू राम थर्मल पावर प्लांट की तीसरी इकाई की आधारशिला रखी।

टेक्नोलॉजी: यह एक अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल थर्मल यूनिट है। यह तकनीक पारंपरिक पावर प्लांट की तुलना में अधिक कुशल होती है। इसमें प्रति मेगावॉट-घंटे कम कोयले की आवश्यकता होती है, जिससे केवल लागत घटती है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है, जो पर्यावरण के लिए एक बड़ी राहत है।

मौजूदा प्लांट के साथ विस्तार: यह नया 800 मेगावॉट का प्लांट मौजूदा 2 x 300 मेगावॉट के दीनबंधु छोटू राम थर्मल पावर प्लांट के साथ ही बनाया जा रहा है। इसका मतलब है कि यह एक विशाल ऊर्जा परिसर बन जाएगा।

ईंधन का स्रोत: यह नया थर्मल पावर प्लांट बिजली उत्पादन के लिए कोयले का उपयोग करेगा।

निर्माण और स्वामित्व: इस प्लांट का निर्माण हरियाणा पावर जनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPGCL) द्वारा किया जा रहा है, जो हरियाणा सरकार के स्वामित्व में है। यह राज्य सरकार की एक प्रमुख पहल है।

उत्पादन की शुरुआत: इस प्लांट से बिजली का उत्पादन मई 2027 से शुरू होने की उम्मीद है।

बायोगैस का उत्पादन: इस प्लांट की एक और खासियत यह है कि यह ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ संपीड़ित बायोगैस (Compressed Biogas) भी बनाएगा। इसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 2,600 मीट्रिक टन होगी।

कचरे का उपयोग: बायोगैस बनाने के लिए यह प्लांट हर साल 45,000 टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और 36,000 टन गोबर का उपयोग करेगा। यह एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे कचरे को ऊर्जा में बदला जा सकता है, जिससे स्वच्छता और ऊर्जा सुरक्षा दोनों सुनिश्चित होती हैं।

 

 

A4.
बाल तस्करी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
Supreme Court's Strict Stance Against Child Trafficking

बाल तस्करी, एक ऐसा गंभीर अपराध जो बच्चों से उनका बचपन, उनका भविष्य और उनके सपने छीन लेता है। इस समस्या से निपटने के लिए भारत की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कदम उठाया है। 16 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में बाल तस्करी के मामलों की त्वरित सुनवाई और रोकथाम के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

मुख्य बिंदु और दिशानिर्देश:

त्वरित सुनवाई का आदेश: जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने सभी हाई कोर्ट को यह निर्देश दिया है कि वे निचली अदालतों को बाल तस्करी के मामलों की सुनवाई 6 महीने के भीतर पूरी करने का आदेश दें।

दैनिक सुनवाई की अनिवार्यता: न्याय में अनावश्यक देरी को रोकने के लिए, ऐसे मामलों की सुनवाई अब दैनिक आधार पर की जाएगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की आलोचना: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके और आरोपियों को जमानत देने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की।

जमानत रद्द करने का निर्णय: शीर्ष अदालत ने मानव तस्करी के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 13 आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द कर दिया।

राज्य सरकारों को निर्देश: बेंच ने सभी राज्य सरकारों को अपराध के खिलाफ प्रभावी उपायों को लागू करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है।

अतिरिक्त जानकारी:

कानूनी ढांचा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है, जबकि अनुच्छेद 24, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी खतरनाक कार्य में नियोजित करने से प्रतिबंधित करता है।

मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) विधेयक, 2018: यह विधेयक मानव तस्करी को एक संगठित अपराध के रूप में देखता है और इसके रोकथाम, पीड़ितों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

पोक्सो अधिनियम (POCSO Act): यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) भी बाल तस्करी के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि अक्सर तस्करी का उद्देश्य यौन शोषण होता है।

 

 

A5.
भारत का गौरव: 'गौरव' ग्लाइड बम का सफल परीक्षण
India's Pride: Successful Test of 'Gaurav' Glide Bomb

हाल ही में, भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल सुखोई-30 MKI विमान से 'गौरव' नामक एक लंबी दूरी के ग्लाइड बम का सफल परीक्षण किया गया है। यह परीक्षण देश की रक्षा क्षमताओं को और भी मजबूत करता है।

आइए इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के बारे में कुछ रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य जानें:

सटीकता और दूरी: इस बम ने परीक्षण के दौरान लगभग 100 किलोमीटर की दूरी तक सटीकता के साथ अपने लक्ष्य को भेदा। यह लंबी दूरी की क्षमता भारतीय वायुसेना को दुश्मन की हवाई सुरक्षा प्रणाली (Air Defence System) की पहुँच से दूर रहकर ही अपने लक्ष्यों को निशाना बनाने में मदद करती है।

स्वदेशी विकास का प्रतीक: 'गौरव' ग्लाइड बम को पूरी तरह से भारत में ही डिजाइन और विकसित किया गया है। इसे अनुसंधान केंद्र इमारत (RCI), आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDE), और एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR) द्वारा मिलकर बनाया गया है, जो 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान का एक शानदार उदाहरण है।

वजन और क्षमता: 'गौरव' 1000 किलोग्राम वर्ग का एक शक्तिशाली बम है। इसे 'स्मार्ट बम' की श्रेणी में रखा गया है। स्मार्ट बम वे हथियार होते हैं जो GPS या अन्य मार्गदर्शन प्रणालियों का उपयोग करके अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं, जिससे उनकी सटीकता कई गुना बढ़ जाती है।

ग्लाइड बम क्या होते हैं? ग्लाइड बम, पारंपरिक बमों से अलग होते हैं। इनमें पंख जैसी संरचनाएं होती हैं, जो इन्हें गिराए जाने के बाद हवा में लंबी दूरी तक ग्लाइड करने में मदद करती हैं। ये विमान से गिराए जाने के बाद किसी रॉकेट इंजन की तरह काम नहीं करते, बल्कि गुरुत्वाकर्षण और वायुगतिकीय (Aerodynamic) सिद्धांतों का उपयोग करके आगे बढ़ते हैं। इस कारण इन्हें दुश्मन की मिसाइल प्रणालियों द्वारा ट्रैक करना कठिन हो जाता है।

सुखोई-30 MKI विमान: इस परीक्षण के लिए जिस सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमान का उपयोग किया गया, वह भारतीय वायुसेना का एक प्रमुख मल्टी-रोल लड़ाकू विमान है। यह विमान भारत द्वारा रूस के सहयोग से निर्मित किया गया है और इसे कई उन्नत हथियार प्रणालियों से लैस किया गया है। 'गौरव' जैसे स्वदेशी हथियारों का इस पर सफल एकीकरण (Integration) यह दर्शाता है कि हमारा देश अपने मौजूदा रक्षा मंचों को आधुनिक बनाने में सक्षम है।

 

 

A6.
भारत की नई शक्ति: लेज़र-निर्देशित हथियार प्रणाली
India's New Power: The Laser-Guided Weapon System

हाल ही में, भारत ने रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। हमारा देश अब दुनिया का चौथा ऐसा राष्ट्र बन गया है जिसने उच्च ऊर्जा लेज़र-निर्देशित (DEW) हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण किया है। यह एक ऐसी तकनीक है जो हवाई लक्ष्यों को सटीक निशाना बनाकर नष्ट करने में सक्षम है। इस विशिष्ट क्लब में शामिल होने वाले अन्य देश रूस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं, जो इस क्षमता का प्रदर्शन पहले ही कर चुके हैं।

मुख्य बातें:

 

सफलता का श्रेय: इस लेज़र-आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार प्रणाली, जिसका नाम एमके-II(A) डीईडब्ल्यू है, का परीक्षण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित नेशनल ओपन एयर रेंज (NOAR) में किया गया।

तकनीकी विवरण: यह प्रणाली 30 किलोवॉट की शक्ति वाली है, जो इसे हवाई लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से नष्ट करने की क्षमता देती है।

स्वदेशी विकास: एमके-II(A) प्रणाली को पूरी तरह से DRDO के उच्च ऊर्जा प्रणाली और विज्ञान केंद्र (CHESS), हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है। इसमें भारतीय उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहा है, जो 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देता है।

बहुआयामी उपयोग: इस हथियार प्रणाली को कई उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है:

    लंबी दूरी पर फिक्स्ड-विंग ड्रोन को निशाना बनाना और गिराना।

    दुश्मन के कई ड्रोन हमलों को एक साथ रोकना।

    दुश्मन के निगरानी सेंसर और एंटीना को नष्ट करना।

प्रभावशाली रेंज: इस हथियार प्रणाली की प्रभावी रेंज 5 किलोमीटर है, जो इसे कई सामरिक स्थितियों के लिए उपयुक्त बनाती है।

अतिरिक्त जानकारी:

लेज़र-निर्देशित हथियार प्रणाली, जिसे निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapon - DEW) भी कहा जाता है, भविष्य की युद्ध तकनीक मानी जाती है। ये हथियार पारंपरिक गोला-बारूद पर निर्भर नहीं होते, जिससे उनकी लागत और रसद में कमी आती है। लेज़र बीम प्रकाश की गति से यात्रा करती है, जिससे लक्ष्य को प्रतिक्रिया करने का बहुत कम समय मिलता है। इन हथियारों का उपयोग हवाई हमलों से बचाव, मिसाइलों को नष्ट करने और यहां तक कि दुश्मन के संचार और इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों को जाम करने के लिए किया जा सकता है। यह तकनीक भारत को हवाई खतरों और ड्रोन हमलों से बचाव में एक महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करेगी, जिससे हमारी रक्षा क्षमताएं और मजबूत होंगी। यह आत्मनिर्भर भारत और रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।

 


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