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23 August 2025 Current Affairs Questions

 23 August 2025 Current Affairs Questions

हैलो दोस्तों ! 

आज हम current affairs के इन बिंदुओं पर गहराई से विचार करेंगे और उम्मीद करेंगे कि आप इन बिंदुओं को लंबे समय तक याद रखने के लिए हमारे साथ 30 से अधिक प्रश्नों की क्विज जरूर खेलेंगे. दी गई घटनाओं पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न नीचे दिए गए हैं।

  • A1. भारत का पहला AI-आधारित वन अलर्ट सिस्टम
  • A2.  अमेरिका का ‘गोल्डन डोम’: क्या है यह महात्वाकांक्षी मिसाइल शील्ड?
  • A3. न्याय का नया अध्याय: राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 
  • A4. भारत और RIMES: सुरक्षित भविष्य की ओर एक कदम
  • A5. हॉकआई 360: भारत की आँख और कान
  • A6. भारत में GLEX 2025: अंतरिक्ष का भविष्य

आप प्रतिदिन हमारी वेबसाइट SelfStudy Meter पर 30 करंट अफेयर प्रश्नों को पढ़ सकते हैं और अगले दिन सुबह 7:00 बजे इन पढ़े हुए प्रश्नों की क्विज खेल सकते हैं हमारे YouTube channel - Mission: CAGS पर, जबकि प्रतिदिन 45 से अधिक करंट अफेयर प्रश्नों की क्विज खेलने के लिए व pdf  डाउनलोड करने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो कर सकते हैं ।
Our Telegram channel - Mission: CAGS
Quiz time on Telegram is 7:30 p.m



क्विज खेलने के फायदे:

क्विज खेलने से आपकी रीडिंग स्किल इंप्रूव होगी, लर्निंग स्किल बढ़ेगी और आप अपनी तैयारी का स्वमूल्यांकन कर सकेंगे मतलब आप अपना याद किया हुआ चेक कर सकेंगे कि आपके द्वारा पढ़ा हुआ आपको कितना याद है?
क्विज खेलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी तैयारी को एक दिशा दे पाएंगे।


A1.
भारत का पहला AI-आधारित वन अलर्ट सिस्टम
Protecting Forests with AI: A Madhya Pradesh Story

मध्य प्रदेश, जिसे भारत का 'वन राज्य' कहा जाता है, ने अपने जंगलों की सुरक्षा के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। राज्य ने भारत की पहली AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस)-आधारित रियल-टाइम वन अलर्ट सिस्टम लॉन्च की है। यह तकनीक केवल वन संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करेगी बल्कि जंगल की निगरानी को भी और अधिक प्रभावी बनाएगी।

इस प्रणाली को गुना के वन प्रभागीय अधिकारी (डीएफओ) अक्षय राठौर ने आईआईटी रुड़की के पूर्व छात्र होने के नाते और चैट जीपीटी की मदद से विकसित किया है। यह सिस्टम जंगलों में अवैध गतिविधियों जैसे पेड़ों की कटाई, अतिक्रमण और आग लगने की घटनाओं का तुरंत पता लगाने में मदद करता है।

 मुख्य बिंदु

 

 पायलट प्रोजेक्ट: इस प्रणाली को 2024 में शिवपुरी, गुना, विदिशा, बुरहानपुर, और खंडवा में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है।

 बड़ा लक्ष्य, बड़ी चुनौती: भारतीय वन सर्वेक्षण की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में 85,724 वर्ग किलोमीटर में भारत का सबसे बड़ा वन और वृक्ष आवरण है। हालांकि, इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राज्य में लगभग 612.41 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का सबसे अधिक नुकसान भी हुआ है, जो इस तकनीक की आवश्यकता को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

 कैसे काम करता है?: यह सिस्टम सैटेलाइट डेटा, सेंसर और अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करने के लिए AI का उपयोग करता है। जैसे ही कोई असामान्य गतिविधि का पता चलता है, यह वन अधिकारियों को तुरंत अलर्ट भेजता है, जिससे वे समय पर कार्रवाई कर सकें।

 अतिरिक्त जानकारी

 यह प्रणाली वनों की सुरक्षा के लिए पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक तेज और सटीक है। पारंपरिक तरीकों में अक्सर घटनाओं का पता तब चलता है जब काफी नुकसान हो चुका होता है।

 AI तकनीक जंगलों की निगरानी के लिए ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी के साथ मिलकर काम कर सकती है, जिससे वन अधिकारियों को दुर्गम क्षेत्रों की भी बेहतर जानकारी मिलती है।

 यह प्रणाली केवल अवैध कटाई तक ही सीमित नहीं है। इसका उपयोग जानवरों के अवैध शिकार, वन मार्गों पर वाहनों की निगरानी और मौसम संबंधी डेटा का विश्लेषण करने के लिए भी किया जा सकता है।

 वन भूमि की सबसे अधिक हानि का मतलब यह नहीं है कि सबसे अधिक पेड़ कटे हैं। इसमें वनों का अन्य भूमि उपयोगों में रूपांतरण, जैसे कृषि या शहरीकरण, भी शामिल है।

 वन संरक्षण में AI का उपयोग एक वैश्विक प्रवृत्ति है। दुनिया भर में कई देश अपने जंगलों की सुरक्षा के लिए ऐसी ही तकनीकों को अपना रहे हैं। यह भारत को भी इस क्षेत्र में अग्रणी देशों की श्रेणी में लाता है।

 AI से संचालित यह प्रणाली वन विभाग के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है, जिससे वे अपने सीमित संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर पाएंगे।

 

A2.
अमेरिका कागोल्डन डोम’: क्या है यह महात्वाकांक्षी मिसाइल शील्ड?
America's 'Golden Dome': The Ambitious New Missile Shield

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई देश खुद को आसमान से आने वाले हर खतरे से कैसे बचा सकता है? आज के युग में जब मिसाइलें मिनटों में महाद्वीप पार कर सकती हैं, तब हर देश को अपनी सुरक्षा की चिंता है. इसी चिंता के जवाब में, अमेरिका ने एक ऐसी अभूतपूर्व योजना की घोषणा की है, जो शायद इतिहास की सबसे बड़ी मिसाइल रक्षा प्रणाली बनने जा रही है.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 175 बिलियन डॉलर की गोल्डन डोम मिसाइल रक्षा कवच योजना का अनावरण किया है. इस महात्वाकांक्षी कार्यक्रम का उद्देश्य चीन और रूस जैसे देशों से उभरते खतरों को रोकना है. इस परियोजना को लीड करने के लिए यूएस स्पेस फोर्स जनरल माइकल गुएटलीन को भी नामित किया गया है.

गोल्डन डोम क्या है?

यह एक विशाल मिसाइल रक्षा प्रणाली है जो अंतरिक्ष या अन्य महाद्वीपों से आने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह प्रणाली इज़राइल के प्रसिद्ध आयरन डोम से प्रेरित है, लेकिन इसका पैमाना कहीं अधिक बड़ा है. गोल्डन डोम का मुख्य उद्देश्य उपग्रहों का एक नेटवर्क स्थापित करना है जो आने वाली मिसाइलों का पता लगा सके, उन्हें ट्रैक कर सके और रास्ते में ही नष्ट कर सके. इस कवच के लिए सैकड़ों उपग्रहों को तैनात किया जाएगा. यह परियोजना जनवरी 2029 तक पूरी होने की उम्मीद है. इस परियोजना में लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन और एल3 हैरिस टेक्नोलॉजी जैसी प्रमुख रक्षा कंपनियाँ शामिल हो सकती हैं.

दुनिया की शीर्ष वायु रक्षा प्रणालियाँ

1.  S-400 ट्रायम्फ (रूस): इसे दुनिया की सबसे उन्नत लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणालियों में से एक माना जाता है. यह 400 किमी की रेंज और 56 किमी तक की ऊँचाई पर लक्ष्य को भेद सकती है, जिसमें विमान, क्रूज़ मिसाइलें और यहाँ तक कि स्टील्थ विमान भी शामिल हैं.

2.  डेविड्स स्लिंग (इज़राइल/यूएसए): इज़राइल और अमेरिका द्वारा विकसित, यह प्रणाली आयरन डोम और लंबी दूरी की एयरो प्रणालियों के बीच की दूरी को भरती है. यह 70-300 किमी की रेंज के साथ मध्यम से लंबी दूरी के खतरों से बचाव करती है.

3.  टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) (यूएसए): यह प्रणाली बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके अंतिम चरण (टर्मिनल फ़ेज़) में रोकती है. इसकी रेंज 200 किमी और ऊँचाई कवरेज 150 किमी है, जिससे यह अमेरिकी मिसाइल रक्षा कवच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है.

4.  MIM-104 पैट्रियट (यूएसए): रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित, यह 160-170 किमी की रेंज और 24 किमी की अधिकतम ऊँचाई पर विमानों, क्रूज़ मिसाइलों और सामरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करती है.

5.  HQ-9 (चीन): यह प्रणाली रूसी S-300 से प्रेरित है, जो 125 किमी की रेंज और 27 किमी की ऊँचाई पर काम करती है. यह चीनी वायु रक्षा का एक मुख्य स्तंभ है.

अतिरिक्त जानकारी

 मिसाइल शील्ड का महत्व: एक मिसाइल शील्ड या रक्षा कवच सिर्फ़ सैन्य शक्ति का प्रतीक नहीं होता, बल्कि यह एक देश को राजनीतिक और रणनीतिक लाभ भी देता है. ऐसी प्रणाली होने पर कोई भी देश मिसाइल हमले के डर के बिना अपनी विदेश नीति को अधिक स्वतंत्रता से संचालित कर सकता है.

 आयरन डोम की सफलता: इज़राइल का आयरन डोम दुनिया में सबसे सफल मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है. इसने गाज़ा पट्टी से फ़ायर किए गए हज़ारों रॉकेटों को सफलतापूर्वक इंटरसेप्ट किया है. इसकी सफलता ने ही दुनिया भर के देशों को मिसाइल रक्षा प्रणालियों में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है.

 इंटरसेप्टर मिसाइलें: मिसाइल रक्षा प्रणाली में मुख्य रूप से इंटरसेप्टर मिसाइलों का उपयोग होता है. ये मिसाइलें दुश्मन की मिसाइलों को हवा में ही टक्कर मार कर या उनके पास आकर विस्फोट करके नष्ट कर देती हैं. इन्हें हिट-टू-किल या ब्लास्ट-फ्रेग्मेंटेशन तकनीक का उपयोग करके डिज़ाइन किया जाता है.

 लेयर्स ऑफ़ डिफेंस: एक प्रभावी मिसाइल रक्षा प्रणाली में अक्सर सुरक्षा की कई परतें होती हैं, जिन्हें लेयर्स ऑफ़ डिफेंस कहा जाता है. इसमें कम दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी की प्रणालियाँ शामिल होती हैं जो अलग-अलग ऊँचाइयों पर काम करती हैं. गोल्डन डोम इसी तरह की बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा.

 

A3.
न्याय का नया अध्याय: राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन
A New Chapter for Justice: National Mediation Conference

3 मई, 2025 को भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, ने नई दिल्ली में पहले राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन (National Mediation Conference) का उद्घाटन किया, जो देश में विवाद समाधान के लिए एक नए और प्रभावी रास्ते का संकेत देता है। इस महत्वपूर्ण अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, और केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री, अर्जुन राम मेघवाल, ने भी अपने विचार साझा किए।

इस सम्मेलन का आयोजन विधि एवं न्याय मंत्रालय के सहयोग से भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय द्वारा किया गया था। इस तरह के कार्यक्रम न्याय प्रणाली को और अधिक सुलभ और प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।

 

अपने संबोधन में, राष्ट्रपति मुर्मू ने मध्यस्थता अधिनियम, 2023 को हमारी सभ्यतागत विरासत को मजबूत करने की दिशा में पहला कदम बताया। यह अधिनियम सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि यह आपसी सहमति, सद्भाव और संवाद की उस परंपरा को पुनर्जीवित करता है जो हमारे समाज की नींव है।

अतिरिक्त जानकारी

 क्या है मध्यस्थता (Mediation)?

    मध्यस्थता एक वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution - ADR) प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष, जिसे मध्यस्थ कहते हैं, विवाद में शामिल पक्षों को बातचीत के माध्यम से एक सर्वसम्मति से स्वीकार्य समाधान तक पहुँचने में मदद करता है। इसमें मध्यस्थ कोई निर्णय नहीं थोपता, बल्कि दोनों पक्षों को अपनी समस्याओं को समझने और उनका समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है।

 मध्यस्थता अधिनियम, 2023 का महत्व:

    यह अधिनियम मध्यस्थता को कानूनी मान्यता प्रदान करता है और इसे एक संरचित प्रक्रिया बनाता है। यह अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम करने, समय और पैसा बचाने और पार्टियों के बीच संबंधों को बनाए रखने में मदद करेगा। यह अधिनियम भारत में मध्यस्थता के लिए एक मजबूत ढांचा स्थापित करता है, जिससे यह न्याय प्रणाली का एक अभिन्न अंग बन सके।

 भारत में मध्यस्थता का इतिहास:

    भारत में मध्यस्थता की जड़ें काफी गहरी हैं। प्राचीन काल से ही पंचायतें और ग्राम सभाएं विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की तरह काम करती रही हैं। यह हमारे "सुलह" और "समझौते" की संस्कृति का हिस्सा रहा है। आधुनिक कानूनी प्रणाली में इसे शामिल करना इस प्राचीन परंपरा का ही विस्तार है।

 मध्यस्थता की सबसे खास बात यह है कि इसमें दोनों पक्ष विजेता बनकर निकलते हैं। चूंकि वे स्वयं समाधान पर सहमत होते हैं, इसलिए इस समझौते के टूटने की संभावना बहुत कम होती है, जो अदालती फैसलों की तुलना में कहीं अधिक टिकाऊ होता है।

 

A4.
भारत और RIMES: सुरक्षित भविष्य की ओर एक कदम
India and RIMES: A Step Towards a Safer Future

भारत ने 07 से 09 मई, 2025 को श्रीलंका के कोलंबो में आयोजित चौथे RIMES मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में सह-अध्यक्ष के रूप में भाग लिया। यह भागीदारी आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाती है।

RIMES (Regional Integrated Multi-Hazard Early Warning System) की स्थापना का प्रस्ताव वर्ष 2004 की हिंद महासागर सुनामी के बाद दिया गया था। इसका उद्देश्य सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली बनाना था।

RIMES के बारे में कुछ मुख्य बातें:

 RIMES की स्थापना: RIMES की स्थापना 06 जनवरी, 2005 को विशेष आसियान नेताओं की बैठक के दौरान दिए गए प्रस्ताव से हुई थी।

 सदस्य देश: वर्ष 2006 में बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका जैसे देश RIMES में शामिल हुए। वर्तमान में इसमें 16 सदस्य देश और 20 से अधिक सहयोगी राष्ट्र हैं।

 निधि: RIMES को विश्व बैंक और यूनाइटेड किंगडम के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (FCDO) जैसे संगठनों से सहायता मिलती है।

 भारत की भूमिका: भारत वर्तमान में RIMES परिषद की अध्यक्षता कर रहा है। यह भारत की आपदा प्रबंधन क्षमताओं और क्षेत्रीय सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

अतिरिक्त जानकारी:

 RIMES एक अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सरकारी संगठन है जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आपदा जोखिम में कमी और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए काम करता है। इसका मुख्यालय बैंकॉक, थाईलैंड में है।

 यह संगठन वैज्ञानिक जानकारी और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करके सदस्य देशों को आपदाओं से निपटने में मदद करता है।

 RIMES की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह केवल चेतावनी देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकारों और समुदायों को जोखिमों को समझने और उससे निपटने की रणनीति बनाने में भी सहायता करता है।

 

A5.
हॉकआई 360: भारत की आँख और कान
 Hawkeye 360: India's Eye and Ear

 हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने भारत को हॉकआई 360 तकनीक (Hawkeye 360 technology) बेचने की मंजूरी दी है। यह कदम भारत की निगरानी क्षमताओं को एक नई ऊँचाई देगा, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में। यह $131 मिलियन का सौदा, जिसमें सॉफ्टवेयर, प्रशिक्षण और सहायता शामिल है, भारत की रणनीतिक स्थिति को और भी मजबूत करेगा।

 हॉकआई 360 क्या है?

 यह एक अंतरिक्ष-आधारित प्रणाली है जो पृथ्वी की निचली कक्षा में रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सिग्नल को ट्रैक और विश्लेषण करती है। यह उपग्रहों के एक समूह का उपयोग करके उन जहाजों का पता लगाती है जो अपनी पहचान छिपाकर विवादित क्षेत्रों में घूमते हैं और पारंपरिक ट्रैकिंग प्रणालियों से बचते हैं।

 यह प्रणाली समुद्री क्षेत्र में समुद्री क्षेत्र जागरूकता (Maritime Domain Awareness - MDA) को बढ़ाएगी। इसका मतलब है कि भारत के पास समुद्र में होने वाली गतिविधियों की बेहतर और सटीक जानकारी होगी, जिससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता को बनाए रखने में मदद मिलेगी।

 प्रमुख विशेषताएँ:

रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सिग्नल का पता लगाना: हॉकआई 360 उपग्रहों का एक समूह, जिसे क्लस्टर कहा जाता है, रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जन को त्रिकोणीय करता है। यह उन जहाजों और वाहनों को ट्रैक करने में मदद करता है जो अपनी पहचान छिपाने की कोशिश करते हैं।

  समुद्री निगरानी: यह तकनीक विशेष रूप से समुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने और तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों पर नज़र रखने में प्रभावी है।

  भारत की रणनीतिक बढ़त: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, यह तकनीक भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त प्रदान करती है। यह केवल नौसेना को बल्कि अन्य सुरक्षा एजेंसियों को भी विश्वसनीय और समय पर डेटा प्रदान करेगी।

अतिरिक्त जानकारी

  हॉकआई 360 कंपनी एक निजी अमेरिकी कंपनी है जो रेडियो फ्रीक्वेंसी डेटा और विश्लेषण प्रदान करती है। यह कोई सरकारी एजेंसी नहीं है।

  रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे रडार, रेडियो और संचार प्रणालियों से उत्सर्जित होते हैं। हॉकआई 360 इन सिग्नल का विश्लेषण करके उनकी उत्पत्ति का पता लगाती है।

  यह तकनीक केवल जहाजों के लिए, बल्कि जमीनी वाहनों और अन्य संचार उपकरणों के लिए भी उपयोगी हो सकती है, जो इसे बहुआयामी निगरानी उपकरण बनाती है।

  यह प्रणाली पारंपरिक उपग्रह इमेजरी (Satellite imagery) से अलग है। जहाँ इमेजरी से केवल दृश्य जानकारी मिलती है, वहीं हॉकआई 360 से अदृश्य इलेक्ट्रॉनिक गतिविधि (electronic activity) का पता चलता है।

 

A6.
भारत में GLEX 2025: अंतरिक्ष का भविष्य
 GLEX 2025: A Milestone for Indian Space Prowess

वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण शिखर सम्मेलन, GLEX 2025, ने भारत की बढ़ती अंतरिक्ष शक्ति को एक नई पहचान दी है। 7 से 9 मई, 2025 तक नई दिल्ली में आयोजित हुए इस 12वें संस्करण की मेजबानी भारत ने की, जिसने वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में अपनी भूमिका को और मजबूत किया है।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा उद्घाटित, इस सम्मेलन का विषय था, "नई दुनिया तक पहुँचना: अंतरिक्ष अन्वेषण पुनर्जागरण का उद्घाटन" यह विषय अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।

इस महत्वपूर्ण आयोजन को इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (IAF) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ मिलकर आयोजित किया। एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (ASI) ने भी सह-मेजबान के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। GLEX 2025 भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में देश के बढ़ते नेतृत्व को दर्शाया।

 स्थान और तिथि: GLEX 2025, 7 से 9 मई, 2025 तक नई दिल्ली, भारत में आयोजित हुआ।

 मेजबान: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इस सम्मेलन की मेजबानी की।

 सह-मेजबान: एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (ASI) ने सह-मेजबान की भूमिका निभाई।

 आयोजक: इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (IAF) और ISRO ने संयुक्त रूप से इसका आयोजन किया।

 उद्घाटन: केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।

 विषय: "नई दुनिया तक पहुँचना: अंतरिक्ष अन्वेषण पुनर्जागरण का उद्घाटन"

अतिरिक्त जानकारी

 इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (IAF) की स्थापना 1951 में हुई थी और इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में है। यह दुनिया की अग्रणी अंतरिक्ष वकालत संस्था है, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है।

 GLEX सम्मेलन IAF द्वारा आयोजित किया जाता है और यह विभिन्न देशों के अंतरिक्ष एजेंसियों, विशेषज्ञों और उद्योगपतियों को एक मंच पर लाता है। इस तरह के आयोजनों से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में वैश्विक सहयोग को बल मिलता है।

 भारत के लिए यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चंद्रयान-3 की सफलता के बाद हो रहा है, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना दिया। यह सफलता GLEX 2025 में भारत के नेतृत्व को और भी प्रभावी बनाती है।

 ISRO की स्थापना 15 अगस्त, 1969 को हुई थी। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विकसित करना और राष्ट्र के विकास में उसका उपयोग करना है। ISRO ने अपनी लागत-प्रभावी अंतरिक्ष मिशनों के लिए विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त की है।



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