9 August 2025 Current Affairs Questions
हैलो दोस्तों !
आज हम current affairs के इन बिंदुओं पर गहराई से विचार करेंगे और उम्मीद करेंगे कि आप इन बिंदुओं को लंबे समय तक याद रखने के लिए हमारे साथ 30 से अधिक प्रश्नों की क्विज जरूर खेलेंगे. दी गई घटनाओं पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न नीचे दिए गए हैं।
- A1. कोंकण का अनमोल रत्न: थियोबाल्डियस कॉकर्णेसिस
- A2. एक्सोप्लैनेट K2-18b: ब्रह्मांड में जीवन की नई उम्मीद
- A3. कलाम-100: अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान
- A4. अंतरिक्ष में महिला शक्ति: ब्लू ओरिजिन का ऐतिहासिक मिशन
- A5. हिमयुग का शिकारी हुआ ज़िंदा: 10,000 साल बाद हुई 'डायर वुल्फ' की वापसी
- A6. बायोमास मिशन: पृथ्वी के फेफड़ों को समझना
आप प्रतिदिन हमारी वेबसाइट SelfStudy Meter पर 30 करंट अफेयर प्रश्नों को पढ़ सकते हैं और अगले दिन सुबह 7:00 बजे इन पढ़े हुए प्रश्नों की क्विज खेल सकते हैं हमारे YouTube channel - Mission: CAGS पर, जबकि प्रतिदिन 45 से अधिक करंट अफेयर प्रश्नों की क्विज खेलने के लिए व pdf डाउनलोड करने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो कर सकते हैं ।
Our Telegram channel - Mission: CAGS
Quiz time on Telegram is 7:30 p.m
क्विज खेलने के फायदे:
क्विज खेलने से आपकी रीडिंग स्किल इंप्रूव होगी, लर्निंग स्किल बढ़ेगी और आप अपनी तैयारी का स्वमूल्यांकन कर सकेंगे मतलब आप अपना याद किया हुआ चेक कर सकेंगे कि आपके द्वारा पढ़ा हुआ आपको कितना याद है?क्विज खेलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपनी तैयारी को एक दिशा दे पाएंगे।
A1.
कोंकण का अनमोल रत्न: थियोबाल्डियस कॉकर्णेसिस
Konkan's
Precious Gem: Theobaldius Konkanensis
हाल ही में भारत और यू.के. के शोधकर्ताओं की एक टीम ने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में एक ऐसे ही रहस्य का पर्दा उठाया है। उन्होंने एक नई प्रजाति के भूमि घोंघे की खोज की है, जिसका नाम 'थियोबाल्डियस कॉकर्णेसिस' रखा गया है। यह खोज न केवल विज्ञान जगत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे पर्यावरण के लिए भी एक बड़ी खबर है।
आइए, इस नन्हे जीव के बारे में कुछ खास बातें जानें:
नामकरण (Naming): इस घोंघे का नाम 'थियोबाल्डियस कॉकर्णेसिस' महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के नाम पर रखा गया है, जहाँ इसे पहली बार खोजा गया था। यह नाम इस क्षेत्र की जैव विविधता को सम्मान देता है।
स्थानिक प्रजाति (Endemic Species): यह घोंघा उत्तरी पश्चिमी घाटों का स्थानिक है, यानी यह केवल इसी क्षेत्र में पाया जाता है। पश्चिमी घाट एक ऐसा जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जहाँ कई अनोखी और दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
जैव-संकेतक (Bio-indicator): शोधकर्ताओं के अनुसार, ये भूमि घोंघे एक उत्कृष्ट जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। इसका मतलब है कि उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति पर्यावरण की सेहत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है।
जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता (Sensitive to Climate Change): ये घोंघे जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। उनकी आबादी में बदलाव हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि हमारा पर्यावरण कैसे बदल रहा है।
महत्वपूर्ण खोज (Important Discovery): इस खोज से कोंकण के साथ-साथ पश्चिमी घाटों में पाए जाने वाले भूमि घोंघों की प्रजातियों के बारे में हमारी जानकारी बढ़ेगी। यह भविष्य में इस क्षेत्र के संरक्षण प्रयासों में सहायक होगा।
A2.
एक्सोप्लैनेट K2-18b: ब्रह्मांड में जीवन की नई उम्मीद
Exoplanet K2-18b: A New
Hope for Life Beyond Earth
हाल ही में, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की मदद से, उन्होंने एक्सोप्लैनेट K2-18b के वातावरण में जीवन से जुड़े कुछ खास अणुओं की खोज की है। यह खोज एक नई उम्मीद जगाती है कि पृथ्वी से परे भी जीवन मौजूद हो सकता है।
K2-18b: एक अनोखा ग्रह
स्थान और दूरी: K2-18b पृथ्वी से लगभग 124 प्रकाश वर्ष दूर, सिंह (Leo) तारामंडल में स्थित है।
आकार: यह ग्रह पृथ्वी से 2.6 गुना बड़ा है और इसे उप-नेप्च्यून (sub-Neptune) श्रेणी में रखा गया है।
परिक्रमा: यह एक लाल बौने तारे की परिक्रमा करता है।
संभावित बायोसिग्नेचर: वैज्ञानिकों ने इसके वातावरण में डाइमेथाइल सल्फाइड (DMS) और डाइमेथाइल डाइसल्फाइड (DMDS) जैसे अणुओं की पहचान की है। ये गैसें पृथ्वी पर मुख्यतः समुद्री प्लवक (phytoplankton) और बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न होती हैं, जो संभावित रूप से समुद्री-प्रकार के सूक्ष्मजीवी जीवन की ओर इशारा करती हैं। 🌊
जल और अन्य गैसें: वर्ष
2019 में हबल स्पेस टेलीस्कोप ने इसके वातावरण में जलवाष्प के संकेत खोजे थे। बाद में, JWST ने भी कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के संकेतों का पता लगाया, जो जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हो सकती हैं।
### यह खोज इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
इस खोज की सबसे खास बात यह है कि JWST को विशेष रूप से ऐसे एक्सोप्लैनेटों का बेहतर अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसने K2-18b के वातावरण का इतना विस्तृत विश्लेषण किया है कि हम जीवन के लिए आवश्यक बायोसिग्नेचरों की पहचान कर पाए हैं।
सिग्मा स्तर: यह खोज तीन सिग्मा (3σ) की निश्चितता पर आधारित है, जिसका अर्थ है 99.7% की निश्चितता। हालांकि, वैज्ञानिक पुष्टि के लिए आमतौर पर पाँच सिग्मा (5σ) की आवश्यकता होती है, जो 99.9999% की निश्चितता होती है। इसका मतलब है कि अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है।
A3.
कलाम-100:
अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान
Kalam-100:
A New Leap for India's Space Endeavors
हाल ही में, भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारतीय एयरोस्पेस कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस ने अपने महत्वाकांक्षी रॉकेट 'विक्रम-1' के तीसरे चरण को शक्ति देने वाले इंजन 'कलाम-100' का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। यह सफल परीक्षण भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
यह सिर्फ एक परीक्षण नहीं है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष मिशन को नई ऊँचाइयों पर ले जाने का एक बड़ा कदम है। आइए, इस उपलब्धि के बारे में कुछ रोचक बातें जानते हैं:
शक्तिशाली और कुशल: इस इंजन ने 102 सेकंड से अधिक समय तक काम किया और 100 kN (किलोन्यूटन) का पीक वैक्यूम थ्रस्ट उत्पन्न करने की अपनी क्षमता को दर्शाया। यह थ्रस्ट, रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी है।
उन्नत तकनीक: कलाम-100
इंजन ने सटीक थ्रस्ट वेक्टर नियंत्रण के लिए एक उन्नत फ्लेक्स नोजल का उपयोग किया। यह तकनीक रॉकेट की उड़ान के दौरान उसकी दिशा को नियंत्रित करने में मदद करती है।
क्या है 'विक्रम-1'?: 'विक्रम-1' एक छोटा-उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small-Satellite Launch
Vehicle) है। इसे 500 किलोमीटर की निचली-झुकाव वाली कक्षा (low-inclination orbit) में 480 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
नामकरण का सम्मान: इस रॉकेट का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है, जबकि इसके इंजन का नाम भारत के मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सम्मान में रखा गया है। यह हमारे महान वैज्ञानिकों के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है।
A4.
अंतरिक्ष में महिला शक्ति: ब्लू ओरिजिन का ऐतिहासिक मिशन
Women
in Space: Blue Origin's Historic Mission
14 अप्रैल,
2025 का दिन अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ गया। इस दिन, अरबपति जेफ बेजोस की एयरोस्पेस कंपनी, ब्लू ओरिजिन ने एक ऐतिहासिक मिशन को अंजाम दिया, जिसमें पॉप स्टार कैटी पेरी सहित छह महिलाओं ने अंतरिक्ष की रोमांचक यात्रा की। यह 1963 के बाद पहली बार था जब किसी अंतरिक्ष मिशन में पूरी तरह से महिला चालक दल (All-female crew) शामिल हुआ था।
यह मिशन सिर्फ 11 मिनट का था, लेकिन इसने अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस यात्रा के मुख्य बिंदु यहाँ दिए गए हैं:
न्यू शेपर्ड रॉकेट: इस मिशन के लिए ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड रॉकेट का उपयोग किया गया। यह रॉकेट विशेष रूप से सबऑर्बिटल स्पेस टूरिज्म (suborbital space tourism) के लिए डिज़ाइन किया गया है।
कार्मन रेखा को पार किया: रॉकेट ने महिलाओं को पृथ्वी से 100 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई पर ले जाकर, अंतरिक्ष की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा, जिसे कार्मन रेखा (Kármán line) के रूप में जाना जाता है, को पार किया। कार्मन रेखा को पार करना ही आधिकारिक तौर पर अंतरिक्ष में प्रवेश माना जाता है।
भारहीनता का अनुभव: यात्री कुछ मिनटों तक भारहीनता (weightlessness) की स्थिति में रहे, जिसने उन्हें अंतरिक्ष के अद्भुत अनुभव का आनंद लेने का मौका दिया।
ऐतिहासिक क्रू: इस मिशन में कैटी पेरी के अलावा कई अन्य प्रभावशाली महिलाएँ शामिल थीं।
लॉरेन सांचेज़: जेफ बेजोस की मंगेतर।
गेल किंग: लोकप्रिय सीबीएस प्रस्तोता।
आइशा बोवे: नासा की पूर्व रॉकेट वैज्ञानिक, जो अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती हैं।
अमांडा एन गुयेन: एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता।
केरियन फ्लिन: एक फिल्म निर्माता।
यह मिशन न केवल ब्लू ओरिजिन के लिए एक बड़ी सफलता थी, बल्कि इसने अंतरिक्ष यात्रा को और अधिक सुलभ और समावेशी बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। यह दर्शाता है कि अंतरिक्ष अब सिर्फ प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्रियों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए खुला है जो इस अद्भुत अनुभव को जीना चाहता है। यह उड़ान भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी और अगली पीढ़ी की महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
अतिरिक्त जानकारी (Additional Information):
ब्लू ओरिजिन (Blue Origin): इसकी स्थापना 2000 में अमेज़ॅन के संस्थापक जेफ बेजोस ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रा को सस्ता और सुलभ बनाना है।
न्यू शेपर्ड (New Shepard): यह एक पुन: उपयोग योग्य (reusable) रॉकेट प्रणाली है। इसका नाम अमेरिका के पहले अंतरिक्ष यात्री एलन शेपर्ड के नाम पर रखा गया है।
कार्मन रेखा (Kármán line): इसे 100
किलोमीटर (लगभग 62 मील) की ऊँचाई पर माना जाता है। यह वह सीमा है जहाँ पृथ्वी का वातावरण इतना पतला हो जाता है कि पारंपरिक विमान उड़ नहीं सकते और अंतरिक्ष में जाने के लिए रॉकेट की आवश्यकता होती है। इस रेखा का नाम हंगेरियन-अमेरिकी इंजीनियर थियोडोर वॉन कार्मन के नाम पर रखा गया है।
सबऑर्बिटल उड़ान (Suborbital flight): इस प्रकार की उड़ान में अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष तक जाता है, लेकिन पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए पर्याप्त गति प्राप्त नहीं कर पाता और वापस पृथ्वी पर लौट आता है। यह ऑर्बिटल उड़ान (orbital flight) से अलग है, जिसमें यान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होता है।
A5.
हिमयुग का शिकारी हुआ ज़िंदा: 10,000 साल बाद हुई 'डायर वुल्फ' की वापसी
The
Dire Wolf Returns: A 10,000-Year-Old Predator is Resurrected
क्या आपने कभी सोचा है कि विलुप्त हो चुके जानवरों को फिर से जीवित किया जा सकता है? यह अब केवल विज्ञान-फाई कहानियों का हिस्सा नहीं रहा, बल्कि एक सच्चाई बन गया है। अमेरिका के डलास, टेक्सास में स्थित बायोटेक कंपनी कोलोसल बायोसाइंसेज ने 10,000 से अधिक वर्षों से विलुप्त हो चुके खूंखार शिकारी डायर वुल्फ (Aenocyon dirus) को पुनर्जीवित कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह परियोजना न केवल संरक्षण की नई संभावनाओं को खोलती है, बल्कि विलुप्तीकरण (de-extinction) के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी साबित हुई है।
आइए, इस अद्भुत परियोजना के बारे में कुछ रोचक तथ्यों को जानें:
डायर वुल्फ को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया
पुराने जीवाश्मों से डीएनए: वैज्ञानिकों ने दो डायर वुल्फ जीवाश्मों से आनुवंशिक सामग्री निकाली। इसमें ओहियो से मिला 13,000 साल पुराना एक दाँत और इडाहो से मिली 72,000 साल पुरानी एक खोपड़ी शामिल थी।
अत्याधुनिक डीएनए विश्लेषण: कोलोसल के वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके पिछले अध्ययनों की तुलना में 70 गुना अधिक जीनोमिक डेटा उत्पन्न किया। इससे उन्हें डायर वुल्फ के जीनोम का 12.8 गुना कवरेज मिला, जो कि एक बहुत ही विस्तृत आनुवंशिक खाका (genetic blueprint) था।
CRISPR
और क्लोनिंग तकनीक: निकाले गए डीएनए का उपयोग CRISPR जीन संपादन (gene editing) और अभिनव क्लोनिंग तकनीकों के साथ किया गया। CRISPR तकनीक एक शक्तिशाली उपकरण है जो वैज्ञानिकों को डीएनए में बदलाव करने की अनुमति देती है, जिससे वे विलुप्त हो चुकी प्रजाति के लक्षणों को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
डायर वुल्फ के बारे में कुछ खास बातें
ग्रे वुल्फ से संबंध: आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला है कि डायर वुल्फ अपने आधुनिक रिश्तेदार, ग्रे वुल्फ (Canis lupus), के साथ 99.5% डीएनए साझा करते थे। हालाँकि, वे 5.7 मिलियन साल पहले ही विकासवादी रूप से अलग हो गए थे। इसका मतलब है कि वे एक ही परिवार के सदस्य थे, लेकिन उनका विकास पथ बहुत पहले ही जुदा हो गया था।
विलुप्त होने का कारण: माना जाता है कि डायर वुल्फ लगभग 10,000 साल पहले, हिमयुग के अंत में विलुप्त हो गए थे। जलवायु परिवर्तन और भोजन की कमी (जैसे बड़े शाकाहारी जानवरों का विलुप्त होना) को उनके विलुप्त होने का मुख्य कारण माना जाता है।
शारीरिक विकास: सभी स्तनधारियों की तरह, डायर वुल्फ भी नवजात पिल्लों से पूर्ण विकसित वयस्कों में परिपक्व होने के दौरान कई शारीरिक और संज्ञानात्मक (cognitive) बदलावों से गुज़रते थे। वयस्क डायर वुल्फ ग्रे वुल्फ से बड़े और अधिक शक्तिशाली थे, जिनके दांत और जबड़े बेहद मजबूत थे।
कोलोसल बायोसाइंसेज का मिशन
संस्थापक: कोलोसल की स्थापना वर्ष 2021 में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रसिद्ध जीवविज्ञानी जॉर्ज चर्च और प्रौद्योगिकी उद्यमी बेन लैम ने की थी।
भविष्य की योजनाएं: डायर वुल्फ की सफल वापसी के बाद, कंपनी अब एक और महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर काम कर रही है: ऊनी मैमथ को वापस लाना। उनका मानना है कि विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने से पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
A6.
बायोमास मिशन:
पृथ्वी के फेफड़ों को समझना
Guardian
of Forests: ESA's Biomass Mission
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे ग्रह के जंगल वास्तव में कितने बड़े हैं और समय के साथ वे कैसे बदल रहे हैं? यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का नया और अद्भुत मिशन, 'बायोमास मिशन', इसी रहस्य को सुलझाने के लिए अंतरिक्ष में गया है।
यह मिशन सिर्फ एक उपग्रह नहीं, बल्कि हमारे ग्रह के 'फेफड़ों' (जंगलों) का एक प्रहरी है, जो हमें उनके स्वास्थ्य और स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देगा।
बायोमास मिशन की मुख्य बातें:
क्या है यह मिशन? बायोमास मिशन का मुख्य उद्देश्य दुनिया के जंगलों का मानचित्रण करना है। यह मिशन पेड़ों की बायोमास की मात्रा को सटीक रूप से मापेगा, जिससे हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि कार्बन चक्र में जंगलों की क्या भूमिका है।
कब और कहाँ से लॉन्च हुआ? यह मिशन 29 अप्रैल, 2025 को फ्रेंच गुयाना में स्थित यूरोप के स्पेसपोर्ट से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।
इसकी कक्षा क्या है? इसे पृथ्वी से लगभग 666 किमी की ऊँचाई पर एक सूर्य-समकालिक कक्षा (SSO) में स्थापित किया गया है। यह कक्षा इसे दिन के एक ही समय पर पृथ्वी के एक ही क्षेत्र के ऊपर से गुजरने की अनुमति देती है, जिससे डेटा संग्रह में consistency बनी रहती है।
यह कैसे काम करता है? बायोमास उपग्रह पर एक विशेष P-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) लगा हुआ है। यह रडार बादलों और अँधेरे में भी जंगल के अंदर गहराई तक प्रवेश कर सकता है। यह पेड़ों के तनों और शाखाओं से टकराकर वापस आता है, जिससे पेड़ों के बायोमास और ऊँचाई का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह मिशन?
जलवायु परिवर्तन को समझना: यह मिशन हमें यह समझने में मदद करेगा कि जंगल वायुमंडल से कितना कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और वे जलवायु परिवर्तन को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।
वन प्रबंधन: इससे वन प्रबंधन, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन नीतियों के लिए आवश्यक डेटा मिलेगा।
पृथ्वी एक्सप्लोरर कार्यक्रम: यह ESA
के 'अर्थ एक्सप्लोरर' कार्यक्रम का सातवाँ मिशन है। इस कार्यक्रम के तहत, ESA पृथ्वी की प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए उपग्रह भेजता है।
उपरोक्त घटनाओं पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न के लिए यहां क्लिक करें ।
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